बाबा रामदेव : क्रांति या वहम
बाबा रामदेव : क्रांति या वहम
हिमांशु कुमार
हेल्लो हिमांशु जी बोल रहे हैं ? मेरे हाँ कहने पर उधर से आवाज़ आयी," हम भारत स्वाभिमान मंच से बोल रहे हैं हमने आपकी स्पीच तहेलका की साईट पर देखी है, बाबाजी चाहते हैं आप भारत स्वाभिमान मंच से जुड़ें"! मैं उन दिनों साईकिल यात्रा पर था और उस दिन मैं झूंझनू राजस्थान में था ! मैंने कहा 'बाबा रामदेव जी छत्तीसगढ़ आते हैं पर रायपुर से ही मुख्यमंत्री से पैर छुआ कर वापिस चले जाते हैं, अगर बाबा दंतेवाडा आकर आदिवासियों से मिलते हैं तो हम मानेंगे की बाबा को देश के कमज़ोर लोगों की परवाह है ' इसके बाद ही बात कुछ आगे बढ़ेगी! इसके बाद इस तरह के फोन दो बार और आये बातचीत में मैंने अपनी मन की शंकाएं बताई और मुझे आग्रह्कर्ता कभी भी संतुष्ट नहीं कर पाए ! इसके बाद ऐसे फोन आने बंद हो गए!
मुझे अभी बाबा रामदेव के साथ इस देश के बड़े बड़े क्रांतदर्शी लोगों के चले जाने पर बड़ी बेचैनी हो रही है, क्योंकी बाबा जिस परिवर्तन की और नई समाज रचना की बातें कर रहे हैं उसकी एक भी ईंट उनके पास नहीं है ! पहला खतरा तो यह है की बाबा के चारों तरफ भाजपा के लोगों का जमावड़ा है ! और भाजपा भ्रष्टाचार करने में कांग्रेस से कम है देश में ऐसा कोई भी नहीं मानता यहाँ तक की सार्वजनिक रूप से ऐसा कहने की हिम्मत तो बाबा भी नहीं कर सकते! राजनीति में दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है ! इस नाते अगर अभी कांग्रेस की दुश्मन भाजपा को दोस्त मान कर किसी भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने की कल्पना की जा रही है तो ज़रा एक बार जे पी के प्रयोग को भी याद कर लें , जिसमें उन्होंने इंदिरा गांधी को हटाना ही क्रांती मान लिया था और आर एस एस को साथ ले कर एक वैकल्पिक राजनीति की कल्पना कर डाली थी, सारे देश ने देखा की मात्र सरकार बदलने से कुछ भी नहीं बदला! कांग्रेस फिर सत्ता में आ गयी और जे पी के नज़दीकी लोग जानते हैं अंतिम समय में जे पी कितने निराश थे!
खैर बाबा तो जे पी जितने राजनैतिक परिपक्व भी नहीं हैं! परन्तु बाबा अपनी बातचीत से ऐसा खाखा खीँच रहे हैं कि बाबा के पास इस देश के भ्रष्टाचार को समाप्त करने का कोई नुस्खा आ गया है! जबकी सच्चाई कुछ और है! बाबा स्विस बैंक के पैसे को वापिस लाने पर सबसे ज्यादा जोर दे रहे हैं परन्तु काले धन की खान पर बैठे हुए अरबों रूपया बना रहे भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के साथ बाबा की गलबहियां हैं!
भ्रष्टाचार का सबसे घृणित रूप तो कर्णाटक के भाजपा राज में मंत्री बने हुए बेल्लारी बंधू की खुलेआम लूटपाट और दादागिरी , गुजरात में आदिवासियों की ज़मीने कॉर्पोरेट को देना और वन भूमि अधिनियम का पालन ना करना और उस पर सर्वोच्च न्यायालय की फटकार, छत्तीसगढ़ में पैसा खाकर हजारों आदिवासियों की हत्या और उनका विस्थापन बाबा की नज़र में भ्रष्टाचार है ही नहीं! अगर बाबा और इनके पीछे खड़े देश के समझदार लोग सचमुच ऐसा मान रहे हैं ! की कार्पोरेट का ये भ्रष्ट व्यवसाय ऐसे ही चलता रहे शहरी मध्यम वर्ग के आर्थिक हितों के लिए ग्रामीण भारत का खून चूसना भी चलता रहे, और कुछ वर्त्तमान नेताओं को बदल देने से क्रांति हो जायेगी! तो भाई ऐसा तो फिल्मों में होता है सचमुच की ज़िंदगी में नहीं!
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